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गणेश जी के 12 नाम

 

आइए आज जानते हैं गणेश जी के 12 नाम जो कि हर किसी शुभ कार्य के लिए विद्या अध्ययन शुरुआत के लिए, विवाह के लिए, संग्राम और संकट के समय भी स्मरण करने मात्र से किसी भी प्रकार के बिग नवादा सताती नहीं है।

भगवान श्री गणेश जी के बारह नाम

1 सुमुख
2 एकदंत
3 कपिल
4 गज कर्णक
5 लम्बोदर
6 विकट
7 विघ्ननाश
8 बिनायक
9 धूम्र केतू
10 गणाध्यक्ष
11 भालचन्द्र
12 गजानन
गणेश जी के बारह नाम

श्री गणेश के यह 12 नाम सभी को मंगल प्रदान करने वाले अनिष्ट और विघ्नों को दूर करने वाले सभी कार्यों में सर्वप्रथम स्मरणीय है ।

गणेश जी की आरती 

गणेश जी के 12 नाम


गणेश जी की कहानी


गणेश जी की कहानी

तिलकुटी चौथ की कहानी

एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी । देवरानी गरीब थी और जेठानी अमीर थी ।

देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसको दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।

माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया। पाँच रूपये का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा ( तिल चौथ की कहानी ) सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चाँद उगने पर पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कुछ खायेगी ।

कथा सुनकर वह जेठानी के यहाँ काम करने चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले – माँ ने व्रत किया हैं और माँ भूखी हैं। जब माँ खाना खायेगी तभी हम भी खाएंगे।

जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले ” मैं अकेला नही खाऊँगा , जब चाँद निकलेगा तब सब खाएंगे तभी मैं भी खाऊँगा ”

देवरानी ने कहा – मुझे तो घर जाना है इसलिए मुझे खाना दे दो ।

जेठानी ने उसे कहा – आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ ?

तुम सुबह सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।

देवरानी उदास मन से घर चली आई।

देवरानी के घर पर पति , बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा। परन्तु जब बच्चो को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे।

उसके पति को भी बहुत गुस्सा आया कहने लगा सारा दिन काम करके भी दो रोटी नहीं ला सकती तो काम क्यों करती हो ? पति ने गुस्से में आकर पत्नी को कपड़े धोने के धोवने से मारा। धोवना हाथ से छूट गया तो पाटे से मारा।

वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते रोते पानी पीकर सो गयी।

उस दिन गणेश जी देवरानी के सपने में आये और कहने लगे ” धोवने मारी , पाटे मारी , सो रही है या जाग रही है ”

वह बोली ” कुछ सो रही हूँ , कुछ जाग रही हूँ ”

गणेश जी बोले ,” भूख लगी हैं , कुछ खाने को दे ”

देवरानी बोली ” क्या दूँ , मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं ” जेठानी बचा खुचा खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिलकुटा छींके में पड़ा हैं , वही खा लो।

गणेश जी ने तिलकुटा खाया और उसके बाद कहने लगे – ” धोवने मारी , पाटे मारी , निमटाई लगी है ! कहाँ निमटे ”

वो बोली ” ये पड़ा घर , जहाँ इच्छा हो वहाँ निमट लो ”

फिर गणेश जी बोले “अब कहाँ पोंछू”

अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कि कब से तंग करे जा रहे हैं , सो बोली ” मेरे सर पर पोछो और कहाँ पोछोगे ”

सुबह जब देवरानी उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरे-मोती से जगमगा रहा है , सिर पर जहाँ बिंदायकजी पोछनी कर गये थे वहाँ हीरे के टीके और बिंदी जगमगा रहे थे

उस दिन देवरानी जेठानी के काम करने नहीं गई।

जेठनी मे कुछ देर तो राह देखी फिर बच्चो को देवरानी को बुलाने भेज दिया । जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई होगी।

बच्चे बुलाने गए और बोले – चाची चलो ! माँ ने बुलाया है सारा काम पड़ा है ।

दुनिया में चाहे कोई मौका चूक जाए पर देवरानी जेठानी आपस में कहने का मौके नहीं छोड़ती। देवरानी ने कहा ” बेटा बहुत दिन तेरी माँ के यहाँ काम कर लिया ,अब तुम अपनी माँ को ही मेरे यहाँ काम करने भेज दो ”

बच्चो ने घर जाकर माँ को बताया कि चाची का तो पूरा घर हीरे मोतियों से जगमगा रहा है। जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के पास आई और पूछा कि ये सब हुआ कैसे ? देवरानी ने उसके साथ जो हुआ वो सब कह डाला।

घर लौटकर जेठानी ने कुछ सोचा और अपने पति से कहने लागि – आप मुझे धोवने और पाटे से मारो।

उसका पति बोला कि भलीमानस मैंने तो कभी तुम पर हाथ भी नहीं उठाया। मैं तुम्हे धोवने और पाटे से कैसे मार सकता हूँ। वह नहीं मानी और जिद करने लगी। मजबूरन पति को उसे मारना पड़ा।

मार खाने के बाद , उसने ढ़ेर सारा घी डालकर चूरमा बनाया और छीकें में रखकर और सो गयी।

रात को चौथ विन्दायक जी उसके भी सपने में आये कहने लगे , “भूख लगी है , क्या खाऊँ ”

जेठानी ने कहा ” हे गणेश जी महाराज , मेरी देवरानी के यहाँ तो आपने सूखा चूटकी भर तिलकुट्टा खाया था , मैने तो झरते घी का चूरमा बनाकर आपके लिए छींके में रखा हैं , फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लो ”

गणेश जी बोले ,”अब निपटे कहाँ ” ( माही चौथ की कहानी …. )

जेठानी बोली ,”उसके यहाँ तो टूटी फूटी झोपड़ी थी मेरे यहाँ तो कंचन के महल हैं जहाँ चाहो निपटो ”

फिर गणेश जी ने पूछा ,”अब पोंछू कहाँ ”

जेठानी बोली ” मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लो ”

धन की भूखी जेठानी सुबह बहुत जल्दी उठ गयी। सोचा घर हीरे जवाहरात से भर चूका होगा पर देखा तो पूरे घर में गन्दगी फैली हुई थी। तेज बदबू आ रही थी। उसके सिर पर भी बहुत सी गंदगी लगी हुई थी।

उसने कहा “हे गणेश जी महाराज , ये आपने क्या किया ” मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे।

जेठानी ने घर और की सफाई करने की बहुत ही कोशिश करी परन्तु गंदगी और ज्यादा फैलती गई। जेठानी के पति को मालूम चला तो वह भी बहुत गुस्सा हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा।

परेशान होकर चौथ के बिंदायक जी ( गणेशजी ) से मदद की विनती करने लगी। बोली – मुझसे बड़ी भूल हुई। मुझे क्षमा करो ।

बिंदायक जी ने कहा ” देवरानी से जलन के कारण तूने जो किया था यह उसी का फल है। अब तू अपने धन में से आधा उसे देगी तभी यह सब साफ होगा ”

उसने आधा धन तो बाँट दिया किन्तु मोहरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाढ़ रखी थी। उसने सोचा किसी को पता नहीं चलेगा और उसने उस धन को नहीं बांटा ।

उसने कहा ” हे चौथ बिंदायक जी , अब तो अपना यह बिखराव समेटो ”

वे बोले , पहले चूल्हे के नीचे गाढ़ी हुयी मोहरो की हांडी औरताक में रखी सुई की भी पांति कर।

इस प्रकार बिंदायकजी ने सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा करवाकर अपनी माया समेटी।

हे गणेश जी महाराज , जैसी आपने देवरानी पर कृपा करी वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले , सुनने वाले व हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना। किन्तु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना।

बोलो गणेश जी महाराज की – जय !!!

चौथ माता की – जय !!!



गणेश जी की कहानी ganesh ji ki kahani,

 गणेश जी की कहानी

गणेश जी की कहानी



षटक गणेश

Ganesh ji ki kahani,

एक तालाब में एक मेंढक और मेंढकी रहते थे ।
मेंढकी गणेश जी की बहुत बड़ी भक्त थी, हमेशा संकट विनायक सकट विनायक जपती रहती थी, यही बात मेंढक को पसंद नहीं थी क्योंकि वह अपनी पत्नी के मुख से दूसरे पुरुष का नाम पसंद नहीं करता था ।



एक दिन मेंढक और मेंढकी किसी तालाब में आपस में बात कर ही रहे थे कि अचानक से किसी ने उनको पानी के साथ में घड़े में भर लिया और उस व्यक्ति ने उस पानी के घड़े को आग पर चढ़ा दिया ।
अब मेंढक और मेंढकी को आग की तपन से जीना मुश्किल सा जान पड़ रहा था उसी समय मेंढक को उसकी मेंढकी का मंत्र याद आया उसने कहां अब अपने उस मंत्र का जाप करो और हमारे प्राण बचाओ यदि सही में तुम्हारे गणेश जी सच्चे हैं तो जान बच जाएगी ।



मेंढकी ने भी गणेश जी के मंत्र का जाप शुरू कर दिया, दोनों ने विश्वास के साथ गणेश जी को पुकारा उसी समय दो सांड आपस में लड़ते हुए वहां आए और उस घड़े को गिरा दिया ।



घड़े के गिरते ही उसी समय मेंढक और मेंढकी वहां से भाग गए और उनकी जान बच गई , इस प्रकार मेंढकी की श्री गणेश जी पर विश्वास आस्था रंग लाई और गणेश जी की कृपा से जान बची ।

Ganesh ji ki kahani,

इस कहानी से यह सीख मिलती है की विश्वास और आस्था की भगवान हमेशा लाज रख लेते हैं और भगवान स्वयं नहीं आते तो क्या हुआ अपने भक्तों के लिए किसी भी प्रकार से अनुकूल परिस्थितियां बना देते हैं ।

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गणेश मंत्र, गणेशपञ्चरत्नम्

                              गणेशपञ्चरत्नम्

गणेश पंचरत्न
गणेश पंचरत्न




मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम् ।
अनायकैकनायक विनाशितेभदैत्यक
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जर नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्कर
नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥



अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिंभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनञ्जयादिभूषणं
कपोलदानवारणं भजे
पुराणवारणम् ।।४।।

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मज-
मचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ॥५॥


महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ ६ ॥
।। श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं गणेशपञ्चरत्नस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।







इसी प्रकार से अनेक गणेश मंत्र हमारे इस ब्लॉग पर पाठकों को प्राप्त होंगे आशा करता हूं आप सब  लाभ लेंगे तथा ब्लॉग  को फॉलो जरूर करेंगे
जय श्री कृष्णा






गणेश अष्टक ।। Ganesh Ashtakam

गणेश अष्टक

 सर्वे ऊचुः

यतोऽनन्तशक्तैरनन्ताश्च जीवा

यतो निर्गुणादप्रमे या गुणास्ते ।

यतो भाति संर्व त्रिधा भेदभिन्न

सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।१।।

सब भक्तों ने कहा

जिस अनन्त शक्तिवाले परमेश्वर से अनन्त

जीव प्रकट हुए हैं, जिन निर्गुण परमात्मा से

अप्रमेय (असंख्य) गुणों की उत्पत्ति हुई हैं,

सात्विक, राजस और तामस- इन तीन

| भेदोंवाला यह सम्पूर्ण जगत् जिससे प्रकट

एवं भासित हो रहा है, उन गणेश का हम |

नमन एवं भजन करते हैं।


यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्त

थाब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता।

तथेन्द्रादयो देव सङ्घा मनुष्याः सदा

तं गणेशं नमामो भजामः ।।२।।

जिनसे इस समस्त जगत् का प्रादुर्भाव हुआ

है, जिनसे कमलासन ब्रह्मा, विश्वव्यापी

विश्वरक्षक विष्णु, इन्द्र आदि देव-समुदाय

और मनुष्य प्रकट हुए है, उन गणेश का हम

सदा ही नमन एवं भजन करते हैं।



यतो वाह्निभानूद्भवो भूर्जलं च यतः

सागराश्चन्द्रमा व्यो म वायुः ।

यतः स्थावरा जङ्गमा वृक्षसङ्घा:

सदा तं गणेशं नमामो भजामः ।।३।।

जिनसे अग्नि और सूर्य का प्राकट्य हुआ,

पृथ्वी, जल, समुद्र, चन्द्रमा, आकाश और

वायु का प्रादुर्भाव हुआ तथा जिससे स्थावर

जङगम और वृक्षसमूह उत्पन्न हुए हैं, उन

गणेश का हम नमन एवं भजन करते हैं।



यतो दानवाः किंनरा यक्षसङघा

यतश्चारणा वारणा: श्वापदाश्च ।

यतः पक्षिकीटा यतो वीरूधश्च

सदा तं गणेशं नमामो भजामः ।।४।।

जिनसे दानव, किंनर और यक्ष समूह प्रकट

हुए, जिनसे हाथी और हिंसक जीव उत्पन्न

हुए तथा जिनसे पक्षियों, कीटों और लताबेलों

का प्रादुर्भाव हुआ, उन गणेश का हम सदा

ही नमन और भजन करते हैं।



यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यतः

सम्पदो भक्त संतोषिका: स्युः ।

यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः

सदा तं गणेशं नमामो भजामः ।।५।।

जिनसे मुमुक्षुको बुद्धि प्राप्त होती है और

अज्ञान का नाश होता है, जिनसे भक्तों कों

संतोष देने वाली सम्पदाएँ प्राप्त होती हैं,

तथा जिनसे विघ्नों का नाश और समस्त

कार्यों की सिद्धि होती है, उन गणेश का

हम सदा नमन एवं भजन करते हैं।


यतः पुत्रसम्पद् यतो वाञ्छितार्थो

यतोऽभक्तविघ्नास्तथानेकरूपाः ।

यतः शोकमोहौ यतः काम एव सदा

तं गणेशं नमामो भजामः ।।६।।

जिनसे पुत्र सम्पत्ति सुलभ होती है, जिनसे

मनोवाञ्छित अर्थ सिद्ध होता है, जिनसे

अभक्तों को अनेक प्रकार के विघ्न प्राप्त

होते हैं तथा जिनसे शोक, मोह और काम

प्राप्त होते हैं, उन गणेश का हम सदा नमन

एवं भजन करते हैं।


यतोऽनन्तशक्तिः स शेषो बभूव

धराधारणेऽनेकरूपे च शक्तः ।

यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना

सदा तं गणेशं नमामो भजामः।७।।

जिनसे अनन्त शक्तिसम्पन्न सुप्रसिद्ध शेषनाग

प्रकट हुए, जो इस पृथ्वी को धारण करने

एवं अनेक रूप ग्रहण करने में समर्थ हैं,

जिनसे अनेक प्रकार के अनेक स्वर्गलोक

प्रकट हुए हैं, उन गणेश का हम सदा ही

नमन एवं भजन करते हैं।


यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिः

सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति ।

चिदानन्दभूतं परब्रह्मरूपं

सदा तं गणेशं नमामो भजामः ।।८।।


जिनके विषय में वेदवाणी कुण्ठित हैं,

जहाँ मन की भी पहुँच नहीं है तथा श्रुति

सदा सावधान रहकर 'नेति-नेति'

इन

शब्दों द्वारा जिनका वर्णन करती है, जो

सच्चिदानन्द स्वरूप परब्रह्म हैं उन गणेश

का हम सदा ही नमन एवं भजन करते


श्री गणेश उवाच्य

पुनरू चे गणाधीशः स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः।

त्रिसंध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वं कार्यं भविष्यति।।

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् ।

अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोऽष्टसिद्धीरवाप्नुयात्।।

यः पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने।

स मोचयेद्धन्धगतं राजवध्यं न संशयः।।

विद्याकामो लभे द्विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात्।

वाञ्छिताँल्लभते सर्वानेकविंशतिवारतः।।

यो जपेत् परया भक्त्या गजाननपरो नरः।

एवमुक्त्वा ततो देवश्चान्तर्धानं गतः प्रभुः ।।



 श्री गणेश जी फिर बोले

जो मनुष्य तीन दिनों तक तीनों संध्याओं

के समय इस स्तोत्र का पाठ करेगा, उसके

सारे कार्य सिद्ध हो जायेंगे। जो आठ दिनों

तक इन आठ श्लोकों का एक बार पाठ

करेगा और चतुर्थी तिथि को आठ बार इस

स्तोत्र को पढ़ेगा, वह आठों सिद्धियों को

प्राप्त कर लेगा । जो एक मास तक प्रतिदिन

दस-दस बार इस स्तोत्र का पाठ करेगा,

वह कारागार में बँधे हुए तथा राजा के द्वारा

वध-दण्ड पाने वाले कैदी को भी छुड़ा

लेगा, इसमें संशय नहीं हैं। इस स्तोत्र का

इक्कीस बार पाठ करने से विद्यार्थी विद्याको, पुत्रार्थी पुत्र को तथा कामार्थी समस्त मनोवांच्छित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य परम भक्ति से इस स्तोत्र का जप करता है, वह गजानन का परम भक्त हो जाता है, ऐसा कहकर भगवान गणेश वहीं अन्तर्धान हो गये


।।इति श्रीगणेशपुराणे श्रीगणेशाष्टकं सम्पूर्णम्।।