जीने को जीते थे,
मगर मर मर कर जीते थे,
मज़बूरी में दिन रात,
मेरे रो रो कर बीते थे,
रो रो के तुझको जो,
पुकारा ना होता,
पुकारा ना होता,
तो दुनिया में मेरा,
गुजारा ना होता ।।
मुझें श्याम तेरा,
सहारा ना होता…
दरबार में आकर के,
श्याम मेरा वक्त गुजर जाता है,
सुनते है तेरे दर पे,
बुरे से बुरा सुधर जाता है,
कर्मो को मेरे तुमने,
सुधारा ना होता,
सुधारा ना होता,
तो दुनिया में मेरा,
गुजारा ना होता ।।
मुझें श्याम तेरा,
सहारा ना होता…
नालायक पर भी श्याम,
प्रभु किरपा बरसातें हो,
स्वारथ की दुनिया में,
तुम्ही बस प्रेम दिखाते हो,
‘संजू’ को तुमने जो,
निहारा ना होता,
निहारा ना होता,
तो दुनिया में मेरा,
गुजारा ना होता ।।
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