कहानी कुछ न्याय इसी जीवन में होते हैं
कहानी
एक जितेंद्र नाम का व्यक्ति शहर में व्यापार किया करता था वह मेहनती था निष्ठा के साथ अपना कार्य किया करता था एक दिन उसकी मित्रता एक संजय नाम के व्यक्ति से हो गई !
संजय का हाल बहुत खराब था वह काम के लिए तरस रहा था उसे कभी रोजगार प्राप्त होता तो कभी नहीं होता एक दिन उसने अपनी व्यथा जितेंद्र को सुनाई और कहा कि मेरे बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं मुझे धन की बड़ी जरूरत है कोई काम हो तो जरूर बताओ जितेंद्र ने भी उसको मित्र जैसा समझा क्योंकि जितेंद्र के पास चार-पांच कंपनियों का काम था इसलिए उसने दो कंपनियों का काम उसे दे दिया !
समय का पहिया इस तरह घूम गया कि जितेंद्र के पास 5 कंपनियों का काम था उसके पास काम ना के बराबर रह गया और संजय के पास दो कंपनियों से 9 कंपनी का काम हो गया था एक दिन जितेंद्र ने उसे कहा कि मुझे भी काम की जरूरत है परंतु उसने सुना अनसुना कर दिया उसने जो जितेंद्र से जरूर के समय दो कंपनियों का काम लिया था वह भी वापस नहीं दिया !
जितेंद्र का समय फिर बदल गया उसके पास ज्ञान की कोई कमी नहीं थी इसलिए कई कंपनियों का आर्डर आने लगा फिर जितेंद्र का काम चालू हो गया दोनों मित्र बने हुए थे कभी अपनी कंपनी का ऑर्डर संजय से पूरा करा था तो संजय कभी अपनी कंपनी का आर्डर जितेंद्र से पूरा कर लेता था इस प्रकार कई दिन बीत गए परंतु कई मामलों में संजय जब उलझ जाता था तो वह जितेंद्र की मदद लिया करता था इसके कारण जितेंद्र को अपने ज्ञान का घमंड हो गया था और कई कमियां संजय की निकाल कर उसे क्रोध में डांट फटकार कर दिया करता था भले ही यह जितेंद्र का अपनापन था परंतु संजय को यह रास नहीं आया वह सोचने लगा कि कब मुझे मौका मिलेगा तो मैं उसे इसी प्रकार से डांट फटकार कर अपना बदला पूरा करूंगा !
संजय के किसी कामकाज के सिलसिला में जितेंद्र के साथ में 5 लोग मिलजुल के बात कर रहे थे उसी समय संजय ने बहाना और बात बनाते हुए कहा कि ईन्होंने कौन सा मुझे काम दिया था जो इन्होंने दिया था उसको मैंने अगले महीने ही बढ़ा कर दे दिया था ! संजय ने यही बात दो-तीन बार दो-तीन जगह दोहराई तब जितेंद्र ने कहा कि मैंने अपना गुणगान सुनने के लिए या मदद जताने के लिए नहीं की थी आप बार-बार इसे मत सुनाया करो यह सुनकर संजय को फिर बुरा लगा और जितेंद्र से ज्ञान की बातें सुन सुन कर वह सोच रहा था कि मैं अब इसे ज्ञान कब दूं क्योंकि जितेंद्र का ज्ञान का घमंड तीसरी आसमान पर पहुंच गया था क्युकि तर्क वितर्क करने में और ज्ञान देने में जितेंद्र को अधिक आनंद आता था !
एक दिन सहयोग इस प्रकार बना कि संजय ने किसी काम के लिए जितेंद्र को बुलाया परंतु जितेंद्र ने कहा कि मेरे पास काम है परंतु मैं तुम्हारे काम के लिए आ जाऊंगा और सच में उसने अपना काम छोड़कर संजय के काम हो तवज्जो दी परंतु संजय यह स्वीकार नहीं कर पाया कि मेरे लिए कोई अपना काम कैसे छोड़ सकता है इसलिए उसने जितेंद्र को झूठा कहा और उसके मित्र को भी झूठा कहा यह जितेंद्र सहन नहीं कर पाया और उसने संजय से अपने मित्रता के साथ-साथ कामकाज के रिश्ते भी तोड़ लिए !
एक दिन संजय ने अपने काम के लिए अपने गांव से एक मित्र को बुलाया और अपना काम सौंप दिया परंतु उसके मित्र ने संजय की जिस कंपनी में अच्छी चलती थी जहां से उसे अच्छा रोजगार प्राप्त होता था वहां चुगली करने शुरू कर दी उसके काम में कमियां निकालना शुरू कर दी जिसके कारण संजय को बड़ा नुकसान हुआ और उसके मित्र ने कुछ ऐसा किया कि पुलिस तक जाने की नौबत आ गई संजय की बड़ी बदनामी हुई कई दिनों कई महीनो तक वह यह सोचता रह गया कि मेरे किस कार्य के कारण मेरे साथ ऐसी घटना घटी इसी दुख के साथ-साथ दूसरी कंपनियों में अपना कामकाज करने लगा और जीवन धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा !
निष्कर्ष
जितेंद्र की तरह किसी को भी ज्ञान का घमंड नहीं होना चाहिए घमंड में कही हुई बातों से रिश्ते टूटते हैं जुड़ते नहीं है और संजय ने जितेंद्र का एहसान माना नहीं एक दिन संजय जिस मित्र को गांव से लाया था उस मित्र ने भी संजय का एहसान माना नहीं अर्थात यदि आप किसी को यश देते हैं तो आपको यश मिलता है आप किसी को अच्छा कहेंगे तो आपको भी लोग अच्छा कहेंगे ! जैसा लोगों को दोगे वैसा ही प्राप्त होगा !
Youtube पर हमें फॉलो करें ! Blogger जरूर बने रहे!