मंगल की मूल भवानी, शरणा तेरा है।
शरणा तेरी है, आसरा तेरा है।।
मैया हे ब्रह्मा की पुत्री, लेकर ज्ञान सुरग से उतरी।
आज तेरी कथा बनाकर सुधरी, प्रथम मनाया हूँ।।1।।
मैया भवन बनाया जालिका हार गुंथ ल्याय मालिका।
ध्यान धर कलकत्ता वाली को, पुष्प चढ़ाया है।।2।।
मैया महिषासुर को मार्या, अपने बल से धरन पछाड़या।
हाथ लिये खांडा दुधारा, असुर संहारया है।।3।।
कहता शंकर जटोलि वाला, हर दम रटे गुरु की माला।
खोल मेरे हृदय का ताला, विद्या वर पाया है।।4।।
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