शरणामति
नाथ थारे शरण आयो जी।
जचे जिसतरों खेल खिलाओ, थे मन चायो जी।।
बोझो सभी उतरयो मन को, दुःख बिनसायो जी।
चिन्ता मिटी बड़े चरणों को, सहारो पायो जी।।
सोच फिकर अब सारो, थारे ऊपर आयो जी।
मैं तो अब निश्चित हुयो, अंतर हरषायो जी।।
जस अपजस सब थारो में तो दास कुहायो जी।
मन भंवरो थारो चरन कमल में जा लिपटायो जी।।
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