मिनखा जनम
मानखौ जमारो बन्दा ऐलौ मत खोवै
सुकुरित करले जमारा नै।
पापी क मुख से यो राम कोनी निकले
केशर दुल गयी गारा में॥१॥
भैंस पदमणी न गहणों रे पहरायो,
काँई जाण नौसर हारू नै।
पहर कोनी जाणै बातै औढ़ कोमी जाणै,
कूद पड़ी वा बाड़ा में॥२॥
सोनै की थाली में सुरडी नै परोस्यो,
काँई जाण जीमण जीमाराने।
जीम कोनी जाण बा तौ झूठ कोनी जाण,
जनम गंवायो गन्दी बाड़ा में॥३॥
काच क महल म कुती न सुवाणी,
काँई जाण सोवन हारा नै।
सॉप कोनी जाण बा तौ पौढ़ कोनी जाण,
भूषण लागी धारा में॥४॥
हीरा लै मुरखा न दिन्हों
काँई जाण मुरख हीरा न
हीरा की पारख जंवरी जाण
काँई जाण मुरख गिवारा नै॥५॥
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