मन! तू क्यों पछतावे रे।man to Kyon pachtave Re

 भजन

​मन! तू क्यों पछतावे रे, दिल तू क्यों घबरावे रे।

सिर पर श्री गोपाल बेड़ा पार लगावे रे। ॥टेर॥ १॥

​निज करनी ने याद करूँ, जब जिय्यो घबरावे रे।

प्रभु कि महिमा सुण-सुण दिल में धीरज आवे रे। ॥२॥

​शरणागत की लाज तो सब ही ने आवे रे।

त्रिलोकी को नाथ लाज हरि नहीं, गंमावे रे। ॥३॥

​जो अनन्य चित्त से हरि को ध्यान लगावे रे।

बांको घर को योग क्षेम हरि आप निभावे रे। ॥४॥

​जो मेरा अपराध गिनो तो, अन्त न आवे रे।

ऐसे दीन दयालु हरि चित्त एक न लावे रे। ॥५॥

​पतित उध्दारण बिरद प्रभु को वेद बतावे रे।

मारे गरीब को काज बिरद हरि नाथ लजावे रे। ॥६॥

​महिमा अपरम्पार तो सुरनर मुनि गावे रे।

ऐसो नन्दकिशोर, भक्तन को ओड़ निभावे रे। ॥७॥

​वो है रमा निवास भक्तन को त्रास मिटावे रे।

तू मत होय उदास, कृष्ण का दास कहावे रे। ॥८॥

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