Shiva Shiva Shankara | Sonu Nigam | Shreyas P | Ashutosh A | Mahashivratri 2025

 



मैं धुन्द धुएं के पार कही वृत्त अंत हीन सी  आशा हु जो सबसे सुंदर काव्य रचे मैं ऐसी अनुपम भाषा हु 


ओम नमः शिवाय 

जब सृष्टि नहीं  तब कौन यहां 

तब किसने यह संसार रचा

जब अंतरिक्ष में खुलकर सारी 

दृष्टि छिपी तब कौन दिखा

जो सबसे पहले आया है जो अमिट सदा रह जाएगा शिवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा शीवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा ।

जो अविरत बहता आज यहां 

कल और कहीं बह जाएगा

मैं उसे सामने पाता हूं 

वह रूप धरे भी आता है 

मैं जब भी प्रश्नों से घिरता वह धीमें से मुस्काता है 

मैं उसे सोच भर सकता हूं वह तब विचार बन जाता है शिवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा शीवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा 

वह दो छोरो का अंत कहीं 

वह सबको यहा मिलाता हैं 

वह सत साधना मैं डूबा और सुंदरतम कहलाता है 

जो जैसा है स्वीकार किया हर  परित्यक्त को अपनाया जो ध्यान धर्य पर्याय बना जो संयम धरे मन काया  कब शब्दों मैं ढल जाता है कब मौन उत्तर बन आता है शिवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा शीवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा ।

मैं कर्मों के गति और फल हुं 

मैं फिर भी हूं निस काम यहां

 मैं निराकार में निर्विकल्प

में परब्रह्म का नाम यहां

मैं सब अधरों की मृदुल हसी

मैं हर धड़कन का गीत यहां 

 तुम मानो तो मैं श्रद्धा हु ना मानो फिर भी मीत यहां इस जीवन के भी बाद तुम्हें मैं और कहीं ले जाऊंगा मैं मृत्यु नहीं मै स्वयं पति तो मैं साथ-साथ बढ़ जाऊंगा शिवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा शीवा शिवा शंकरारे शिवा शिवा ओम नमः शिवाय ।




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