धर्म पुजा पाठ

हर प्रकार की पूजा, हवन, मंत्र , मुहूर्त, दुर्गा स्थापना मुहूर्त, दीपावली मुहूर्त, गणपति स्थापना मुहूर्त, जाप, पाठ, ज्योतिष, राशिफल, राशि भविष्य, भगवान के 108 नाम, मंत्र, भगवान श्री गणेश, महादेव, विष्णु, लक्ष्मी, हनुमान के मंत्र, पूजा की लिस्ट आदि इस ब्लॉग पर आपको मिलेंगे ।

ग्रह शान्ति क्यों और कैसे???

 नमस्कार मित्रो  आइए आज बात करते हैं ग्रह शांति की




                                                ग्रह शान्ति क्यों????


प्रकृति में जो कुछ भी है नवग्रह के आधिन हीं है नव ग्रहों का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है और इन नवग्रह की अलग-अलग शक्तियां हमारे शरीर को संचालित करती हैं जिस ग्रह की शक्ति कमजोर हो तो कोई ना कोई दुविधा  का सामना हमें करना पड़ता है इन सब का ज्ञान हमें जन्मकुंडली के द्वारा होता है कि कौन से ग्रह की शांति करनी जरूरी है कोई बालक गंडमूल नक्षत्र में पैदा होता है  तो नक्षत्र की शांति   में नक्षत्र के देवता के साथ-साथ नक्षत्र किस राशि में हैं उस राशि के अनुसार ग्रह की भी पूजा होती है

 ग्रह की शांति के कारण अलग अलग हो सकते हैं परंतु विधि एक जैसी होती है जैसे कोई ग्रह नीच का हो उसके लिए भी शांति करनी चाहिए जैसे कोई ग्रह कुंडली में छठे आठवें भाव में हो उसके लिए भी शांति आवश्यक है अंशात्मक कमजोर हो या किसी पापी ग्रह से दृष्ट हो तो भी शांति करनी पड़ती है कोई पापी ग्रह तकलीफ देता हूं क्रूर ग्रह तकलीफ देता हो उसके लिए भी शांति करनी आवश्यक है कोई पापी ग्रह शुभ ग्रह किस फल को कम कर रहा है यूति में बैठकर उसके लिए भी शांति आवश्यक है कोई ग्रह खराब योग बना रहा हो उसके लिए भी शांति आवश्यक है


उदाहरण के लिए चंद्रमा यदि राहु के साथ में बैठा है तो चंद्रमा की शांति आवश्यक है चंद्रमा यदि शनि के साथ में बैठा है तो भी चंद्रमा की शांति आवश्यक है लग्नेश का संबंध छठे आठवें घर के मालिक से होता है तो दोनों की शांति आवश्यक है राहु केतु से प्रभावित या कालसर्प योग से प्रभावित सभी ग्रहों की शांति आवश्यक है







                                           ग्रह शांति कैसे करे????
ग्रह शांति के लिए अलग-अलग उपाय हैं जैसे किसी ग्रह का दान कर देना यदि चंद्रमा कमजोर हैं तो चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान चंद्रमा की शांति कर सकता है जैसे चिंटी को कीड़े मकोड़ों को शक्कर डाल देना इससे भी चंद्रमा को बल मिलता है चंद्रमा की वस्तु को उपयोग करने वाले व्यक्ति को दे देना यदि चंद्रमा बलहीन हो तो उसकी वस्तुओं को धारण करना जैसे मोती सफेद कपड़े पहनना दूध पानी  पीना आदि

सूर्य चंद्रमा के अलावा छठे आठवें   बाहरबे भाव के क्रूर ग्रह या पापी ग्रह कुछ तकलीफ देते हो  तो उनकी वस्तुओं का दान दे देना चाहिए यह लाल किताब के अनुसार पानी में बहा देना चाहिए 43 दिन तक

कोई भी ग्रह कमजोर हो शुभ फल देने वाला हो तो उसके रत्न को धारण करना चाहिए जिससे  शुभता बढ़े और आप के कार्य आपकी इच्छा अनुसार समय पर होते रहें


किसी भी ग्रह की शांति वैदिक रीति से करें तो वह शुभ हो या अशुभ वैदिक   रीति  से शांति करने पर वह सुभ फल ही देता है वैदिक रीति का अर्थ है पहले उस ग्रह के यंत्र की पूजा करकर  जप करें किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं  जप की संख्या  के अनुसार दशांश हवन  हवन का दशांश तर्पण तर्पण का दशांश मार्जन मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन और ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर विदा करें तो ग्रह की शांति होती है यन्त्र को सदैव पूजा घर मे रखकर पूजे या धारण करे



ग्रहों के गायत्री मंत्र हम पहले ही लिख चुके है गायत्री मंत्र के नाम से ब्लॉग लिखा हुआ है

पौराणिक मन्त्र व जप संख्या इस  प्रकार हैं

सूर्य

ॐ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।।
 जप संख्या 7000 सात हजार
चंद्रमा
ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुट भूषणम्।।
कप संख्या 1100 ग्यारह हजार
मंगल 
ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ।।
जप संख्या 10000 दश हजार
बुध

ॐ प्रियङ्गुलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।
जप संख्या 9000 नो हजार


गुरु

ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।
जप संख्या 19000 उन्नीस हजार

शुक्र
ॐ हिमकुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्।।
जप संख्या 16000 सोलह हजार

शनि
ॐ नीलाञ्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
जप संख्या 23000 तेइस हजार
राहु

ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।।
जप संख्या 18000 अठारह हजार
केतु
ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।।
जप संख्या 17000 सतरह हजार




सभी को एक ही मन्त्र से नमन करते है
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च । 
गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः, सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ।।

कलियुग की मान्यता अनुसार ऊपर जो जप संख्या दी गई है उस से 4 गुना ज्यादा जप करना चाहिए
                       
                           पंडित जितेंद्र सोहन लाल शर्मा
                                                                    धन्यवाद


2 टिप्‍पणियां:

हम से जुड़े रहने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद