Siv Parwati Kahani | शिव पार्वती भाग्य की कहानी

 एक बार भगवान शिव और मां पार्वती भ्रमण करते हुए मृत्यु लोक में आ पहुंचे यहां उन्होंने देखा कि एक ब्राह्मण भगवान का पूजन पाठ कर रहा था परंतु उसके पास आज भोजन कर ले तो कल का कोई ठिकाना नहीं था यहां तक की सुबह भोजन कर ले तो शाम का भी कोई ठिकाना नहीं ।

 ऐसा देखकर माता पार्वती को बड़ी दया आ गई और भगवान शिव से माता पार्वती बोली की है भोलेनाथ आप दया के सागर हो आप देवाधिदेव हो महादेव हो आप इस ब्राह्मण के ऊपर कुछ कृपा करिए । ऐसा सुनकर भगवान शिव ने उस ब्राह्मण को देखा और माता पार्वती से बोले पार्वती इस ब्राह्मण के भाग्य में कुछ भी नहीं है इसने अपने पिछले जन्मों में ऐसा कुछ काम नहीं किया जिससे इसको धन मिल सके इसलिए इसको किसी भी प्रकार से धन नहीं दिया जा सकता 

 माता पार्वती ने हठ पकड़ लिया और बहुत जिद करने के बाद में भगवान शिव बोले है पार्वती यह ब्राह्मण जिस रास्ते से जाएगा उस रास्ते पर एक धन की पोटली रख देंगे यदि इसने वह पोटली उठा ली तो वह धनवान हो जाएगा और हम आगे बढ़ जाएंगे ।

भगवान शिव ने इसी प्रकार किया जिस रास्ते से ब्राह्मण जाने वाला था उस रास्ते पर एक धन के पोटली रख दी परंतु ब्राह्मण पोटली के पास पहुंचने वाला था कि उसके मन में विचार आया कि आज तो मेरे पास दो आंखें हैं यदि यह बुढ़ापे में काम नहीं करें तो मैं कैसे अपना गुजरा करूंग इसलिए मैं हो सके तो अंधा होने की प्रैक्टिस अभ्यास आज ही कर लेता हूं तो मुझे बुढ़ापे में काम आएगा उसने पोटली आने के पहले आंखें बंद कर ली और जैसे ही पोटली आई तो उसने उस पोटली को लात मार आगे बढ़ गया ।

तब भगवान शिव ने कहा देखो पार्वती मैंने कहा था ना इसके नसीब में इसके भाग्य में धन लिखा ही नहीं है तो इसे कोई भी नहीं दे सकता परंतु माता पार्वती शांत नहीं हुई बोली इस प्रकार से नहीं इसके घर पर जाकर आप इस भक्त पर कृपा कर वरदान के रूप में वर दीजिए तब भगवान शिव बोले पार्वती तुम कहती हो तो मैं चला जाता हूं और तुम इस अकेले को वरदान देने के लिए कह रही हो मैं इसके घर में जितने लोग हैं सब को एक-एक वरदान दूंगा पर देख लेना कुछ होना नहीं है ऐसा कर कर भगवान शंकर ब्राह्मण के एक साधु का भेष धारण करके चले गए ।

साधु बनकर भगवान ने ब्राह्मण के घर के बाहर अलख निरंजन अलख निरंजन इस प्रकार आवाज की ब्राह्मण बाहर आया और बोला भैया हमारे घर में तुम्हें देने के लायक कुछ भी नहीं मैं खुद भिक्षाटन करता हूं मांग कर खाता हूं तो साधु रूप धारण किए हुए भगवान शिव ने कहा हे ब्राह्मण तुझ पर भगवान अति प्रसन्न है तुम वर मांगो तेरे घर में जितने लोग हैं सब लोग एक-एक वरदान मांग लो और तुम्हें अब भीक्षा मांगने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी । 

इस प्रकार सुनकर अपने परिवार के सभी सदस्यों को बुलाया जिसमें उसकी पत्नी और एक उसका लड़का था तब भगवान ने कहा पहले कौन वरदान मांगेगा ।

तब ब्राह्मण ने मन मे विचार किया कि मैं तीन रोटी लाता हूं तो ब्राह्मणी बराबर बांट देती है और चार रोटी लाता हूं तो भी बराबर बांट देती है और यदि दो रोटी लेकर आता हूं तो भी बराबर बांट देती है इसलिए ब्राह्मणी मांगने में बड़ी होशियार है उसको ही पहले मांगने का अधिकार दिया जाना चाहिए तो ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से कहा पहले तुम मांगो ब्राह्मणी से जैसे ही वर मांगने के लिए कहा तो ब्राह्मणी बड़े-बड़े ख्वाब देखने लगी और उसने धन के लालच में बड़ा बनने के लिए भगवान से मांगा की है भगवान मुझे देना चाहते हो तो जो राजा जा रहा है उसकी रानी बना दो भगवान ने तथास्तु कहा तुरंत ही रानी बन गई ।

परंतु ब्राह्मण को बड़ा गुस्सा आ गया उसने भगवान के कहने से पहले ही बोला कि हे भगवान मुझे यदि कुछ देना चाहते हो तो उस ब्राह्मणी को काली कलूटी बना दो तब क्या था भगवान शिव ने तथास्तु कहा और वह देखते ही देखते राजा के पीछे बैठी हुई काली कलूटी  बन गई जब राजा ने देखा कि कोई स्त्री काली कलूटी बैठी हुई है तो उसने उठाकर नीचे फेंक दिया ।

 अब वरदान के लिए एक बालक बच गया था तब भगवान ने कहा बालक जो तुम्हें मांगना है मांग लो तब बालक ने कहा हे भगवान मेरी मां जैसे पहले थी वैसे ही कर दो हमें और कुछ नहीं चाहिए भगवान तथास्तु ककह कर आ गए और माता पार्वती से बोले पार्वती मैंने कहा था ना कि जिसने पिछले जन्म में कुछ किसी को दिया ही नहीं हो तो उसको इस जन्म में कुछ नहीं मिल सकता अर्थात अगर भाग्य में नहीं है तो भगवान स्वयं खुद देना चाहे तो भी नहीं दे सकते ।

निष्कर्ष  भाग्य के बिना और समय के पहले किसी को कुछ नहीं मिल सकता ।

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