वृन्दावन सो बन नहीं, नंद गाँव सो गाँव।
बंश बट सो बट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम॥१॥
चलो सखी वहाँ जाइये, जहाँ बसे बृजराज।
गो रस बेचत हरि मिले, एक पंथ दो काज॥२॥
राधा हूँ बड़भागिनी बड़ी तपस्या कीन।
तीन लोक तारण तरण, सो तेरे आधीन॥३॥
बृज चौरासी कोस में, चार गाँव निज धाम।
वृन्दावन, मधुपुरी, बरसाणों, नंद गाँव॥४॥
वृन्दावन के वृक्ष का मरमन जानई कोय।
डार पात फल फूल से श्री राधे राधे होय॥५॥
वृन्दावन सो बन नहीं, नंद गाँव सो गाँव।
जमुनाजी सो जल नहीं, राधाजी को नाम॥६॥
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